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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

धर्म क्या है? धर्म के कितने अंग है?

सत्य,त़प, पवित्रता ओर दया इन चारों का समन्वय ही धर्म है| धर्म का पहला अंग सत्य है| सत्य ही परमात्मा है | सत्य द्वारा नर, नारायण बनता है | धर्म का दूसरा अंग तप है | दुःख सहन कर के जो भक्ति करते है वही तप है| प्रभु आप को बहुत सम्पति देते है पर बहुत सुख का उपयोग ना करिये | जो बहुत सुख भोगता है उसके तन ओर मन दोनों बिगड़ते है| समझ कर दुःख सहन करना और भक्ति करना ही तप है| धर्म का तीसरा अंग पवित्रता है| मन को पवित्र रखिए | मरने के बाद मन साथ जाता है | मन को सम्भालिये ओर उसे भटकने ना दे | धर्म का चौथा अंग दया है | प्रभू ने आपको दिया है तो उदार होकर अन्य को भोजन कराइए | और स्वंय खाइये | प्रभु ने नहीं दिया तो दूसरों की सेवा में अपने तन को लगाइये |

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

श्री बालकृष्णलाल जी

प्रभु श्री बालकृष्णलाल जी को लुका छिपी का खेल बहुत प्रिय है क्यों? (वृंदावन में भी लाला अपने सखा के साथ लुका छिपी का खेल खेलते थे)क्योकि परमात्मा मानव को संसार में उस के कर्मो के अनुसार भेजते समय एक बार प्रकट होते है फिर वह छुप जाते है मानव की बारी होती है अब लाला को ढूढने की,इसलिए मानव को संसार में आकर उन्हें ढूढने का प्रयत्न करना चाहिए

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

क्यो?


न्यायलय मे गीता की शपथ ली जाती है।किसी ओर रामायण, वेद पुराणो की शपथ क्यो नही ली जाती है क्योकि जगत मे सत्य से भी बडा एक सत्य है ओर वह है प्रेम । जिसके प्रति प्रेम है उसके प्रति असत्य का होना कठिन होता है यानि जहां प्रेम है वही सत्य का दर्शन कर सकते है।प्रेम की रग को पकडना आवश्यक है तभी सत्य बुलवाया जा सकता है।

मंगलवार, 18 अगस्त 2009

रुद्राक्ष भाग-2

4.चारमुखी रुद्राक्ष-चारमुखी रुद्राक्ष भगवान ब्रह्माजी का स्वरुप है।इस का स्वामी ग्रह बुद्ध है। इसे धारण करने वाला वेद-शास्त्र संपन्न, ,सर्वशास्त्रज्ञ, महाज्ञानी,सबका प्रिय तथा धन- संपन्न होता है।किसी प्रकार की कमी नही रहती।इससे आत्महत्या का पातक दूर हो जाता है।ऑखो मे तेज,वाणी मे मिठास, शरीर से स्वस्थ तथा दूसरो को आकर्षित करने का गुण आ जाता है।सन्तानहीन स्त्रियो को अवश्य धारण् करन चाहिए। यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- इन चारों पुरुषार्थो को देने वाला है। इसे दाहिने हाथ मे धारण करना चाहिए। यह मंद बुध्दि क्षीण स्मरण शक्ति और कमजोर वाक् शक्ति के लिए अच्छा है।इस रुद्राक्ष को गौ के दूध मे उबाले और 3-4 सप्ताह तक पीने से मानसिक रोगो मे सफलता मिलती है।
5.पंचमुखी रुद्राक्ष- इस का स्वामी ग्रह बृहस्पति है। यह पंच ब्रह्म तत्व का प्रतीक है अर्थात शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु की शक्तियों से सम्पन्न माना गया है।इसके धारण से शारीरिक शक्ति,मानसिक शक्ति,संपति शक्ति,भाग्यशक्ति और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। कुछ ग्रन्थों में पंचमुखी रुद्राक्ष के स्वामी कालाग्नि रुद्र बताए गए हैं।सामान्यत: पाँच मुख वाला रुद्राक्ष ही उपलब्ध होता है। संसार में ज्यादातर लोगों के पास पाँचमुखी रुद्राक्ष ही हैं। यह युवाओं के जीवन को सही दिशा देता है। इससे धन और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।परस्त्री गमन करने के पाप से मुक्त करता है।यह उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।उतराषाढ़ा (सूर्य का नक्षत्र)मे गुलाबी धागे मे बॉधकर गले मे डालने से समस्त नेत्र विकारो से निवारण होता है।रवि पुष्य योग मे ऑवले के बराबर 5 मुखी रुद्राक्ष गुलाबी धागे मे धारण करने से सभी प्रकार के ह्रदय रोगो का निदान होता है।मधुमेह, हड्डियो की कमजोरी,यकृत,गुर्दा मे मदद करता है।इसके कम से कम तीन दाने धारण करने चाहिये।
6.छह मुखी रुद्राक्ष-इस का स्वामी ग्रह शुक्र है।यह कार्तिकेय का प्रतीक है।सकारात्मक सोच,प्रखर बुद्धि,आपसी मेल सौहार्द लाता है तथा सभा-सम्मेलनों में बोलने की शक्ति प्राप्त होती है।यह शुत्र का नाश करता है।पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता होता है।गुप्तांगो,मूत्रयोनि मार्ग,ओर मुंह व गले के रोगों मे आराम पहुंचाता है।(क्रमशः)

चित्र साभार - गूगल

बुधवार, 22 जुलाई 2009

रुद्राक्ष की पहचान् और रोग निवारण


रुद्राक्ष की पहचान्

आजकल बाजार या धार्मिक स्थानो पर नकली रुद्राक्ष मिलते है।रुद्राक्ष की तरह एक फल ओर होता है जिसे भद्राक्ष कह्ते है।यह प्रायः टेढ़ा- मेढ़ा होता है।इसलिए सही तो यह होगा कि जो उसकी शुध्द्ता की 100% गारण्टी लेता हो।वही से रुद्राक्ष को खरीदे।औसतन रुद्राक्ष इण्डोनेशिया मे 70%,भारत मे 5%,और नेपाल मे 25% पाये जाते है।जिस रुद्राक्ष मे प्राकृ्तिक रुप से छेद हो वह उत्तम होता है।शुध्द रुद्राक्ष को अग्नि के समीप ले जाए तो वह बड़े वेग से (करंट लगने की तरह)उछल जाएगा। दो ताबे के सिक्को के मध्य रुद्राक्ष को रखकर दबाया जाए तो वह एक झटके के साथ दिशा बदल लेता है।रुद्राक्ष को हथेली पर रखकर दोनो हाथो से रगड़ा जाए तो "ओज्म सोहज्म" की ध्वनि सुनाई देती है। शुध्द रुद्राक्ष जल मे तैरता नही बल्कि डूब जाता है।इस तरह से आप रुद्राक्ष की पहचान कर धारण कर सकते है।

रोग निवारण रुद्राक्ष द्वारा

रुद्राक्ष कई रोगों से हमारा बचाव करते हैं।रुद्राक्ष हमारे मन को भी शांति प्रदान करने में सहायक होते हैं।रुद्राक्ष की माला पहनने से शरीर मे रक्त का संचार भी सही ढंग से होता है और हृदय भी मजबूत होता है।शहद मे घिसकर रुद्राक्ष देने से मूर्च्छा तथा मृ्गी जैसे रोगो से भी छुटकारा मिल जाता है। पेट के रोग, यकृ्त व लीवर सम्बन्धी रोगो,मानसिक दबाव (डिप्रेशन) का शिकार रहना,एकाग्रता की कमी होना,टी.वी, दमा, खॉसी, टिटेनस के रोग, रुक-रुक के ज्वर होने पर,चक्कर आने पर, प्रदक आदि स्त्रियो के रोगो मे आराम मिलता है।बुधवार को बुध की होरा मे रुद्राक्ष की माला (108) दाने की धारण करने से रक्तचाप ठीक रहता है।कौन से रुद्राक्ष से कौन सा उपचार होता है इसकी चर्चा आगे के लेख मे मै आप से करुगी।

चित्र साभार - गूगल


रविवार, 19 जुलाई 2009

रुद्राक्ष भाग-1

रुद्राक्ष

रुद्राक्ष धारण करने का प्रचलन काफी बढ़ता जा रहा हैलिंगपुराण, मत्स्यपुराण, स्कंदपुराण, शिवमहापुराण, पदमपुराण, एवम उपनिषदो मे तन्त्र मन्त्र आदि ग्रन्थो मे रुद्राक्ष के गुणो का वर्णन मिलता है।
रुद्र का अर्थ है शिव और अक्ष का अर्थ है आँख।दोनो को मिलाकर रुद्राक्ष बना।ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आँखों के जलबिंदु से हुई है।भगवान शिव के आँखों से जो जल इस धरती पर पडा उस जल से इस धरती पर रुद्राक्ष के वृ्क्ष उत्पन्न हो गये।रुद्राक्ष की उत्पत्ति के संबंध में कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, शिव ने सैकडों वर्ष तक साधना की। साधना पूरी होने के बाद जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं, तो उनसे आंसुओं की धारा निकल पडी। ये दिव्य अश्रु-बूंद जहां-जहां भी गिरे, उनसे अंकुरण फूट पडा! बाद में यही रुद्राक्ष के वृक्ष बन गए। रुद्राक्ष के संबंध में एक और कथा प्रचलित है। इसके अनुसार, एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। हवन करते समय उन्होंने शिव का अपमान कर दिया। इस पर क्रोधित होकर शिव की पत्नी सती ने खुद को अग्निकुंड में समाहित करलिया। सती का जला शरीर देख कर शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने सती का पार्थिव शरीर अपने कंधे पर टांग लिया और पूरे ब्रह्मांड को भस्म कर देने के उद्देश्य से तांडव नृत्य करने लगे। सती का जला शरीर धीरे-धीरे पूरे ब्रह्मांड में बिखर गया। अंत में सिर्फ उनके देह का भस्म ही शिव के शरीर पर रह गया, जिसे देख कर वे फूट-फूट कर रो पडे। कहते हैं, उस समय जो आंसू उनकी आंखों से गिरे, वही पृथ्वी पर रुद्राक्ष के वृक्ष बने। ये रुद्राक्ष न केवल कई रोगों से हमारा बचाव करते हैं, बल्कि मन को शांति प्रदान करने में भी सहायकहोतेहैं। रुद्राक्ष का आकार एक बेर के आकार का होता है।लेकिन मलेशिया का रुद्राक्ष मटर के दाने के आकार का होता है, रुद्राक्ष तीन रगो मे पाया जाता है-लाल,काला,और मिश्रित्।असली रुद्राक्ष की पहचान यही है कि यह जल मे डूब जाता है,लेकिन नकली रुद्राक्ष जल मे तैरता रहता है।इस मे बनने वाली धारियो को ही मुख कहा जाता है।
रुद्राक्ष के मुख
रुद्राक्ष् के एक मुख से लेकर इक्कीस् मुख तक होते है।भिन्न भिन्न मुखो वाले रुद्राक्ष मे अलग-अलग प्रकार की शाक्ति होती है।इस के अलावा गौरी--शंकर रुद्राक्ष, गणेश रुद्राक्ष,सवार रुद्राक्ष,और त्रिजुती रुद्राक्ष भी है।जिनकी अपनी अलग महत्ता है।


1.एकमुखी रुद्राक्ष- स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है।इसके स्वामी ग्रह सूर्य है।इसलिए इसको धारण करने से सूर्य ग्रह से सम्बाधित सभी दोष नष्ट हो जाते है।यह आंख, नाक, कान और गले की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है।इस को धारण करने वाला ब्रह्म-हत्या जैसे महापापो से भी मुक्त हो जाता है।


2.द्विमुखी रुद्राक्ष-अर्धनारीश्वर रुप होने की वजह से एकता का प्रतीक माना जाता है।इसको धारण करने से आदशाक्ति भगवती की कृ्पा प्राप्त होती है।इसके स्वामी ग्रह चन्द्र है।जिन लोगो को बहुत गुस्सा आता है,उनको इसे धारण करना चाहिए।सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है।यह धैर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा की वृद्धि में सहायक होता है।इसे धारण करने से गौ-हत्या जैसे पाप भी दूर हो जाते है।साथ ही पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं भी काफी हद तक दूर हो जाती हैं।


3.त्रिमुखी रुद्राक्ष- यह साक्षात तीन अग्नियो (गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्नि) का स्वरुप होता है।जो इसे धारण करता है,उस पर अग्नि देव प्रसन्न होते है।इस के स्वामी ग्रह मंगल है। यह स्त्री-हत्या जैसे पापो को दूर करने वाला, विधा प्रदाता,शुत्र नाश,पेट की व्याधि तथा अपघात जैसी अशुभ घटनाओ से रक्षा करता है।मधुमेह,रक्तचाप मे भी लाभकारी होता है।जो ज्वर तीन दिन पीछे आता हो इस के धारण करने से नही रहता है।यह रुद्राक्ष ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है। (क्रमशः)


चित्र साभार - गूगल

सोमवार, 11 मई 2009

कालसर्प योग निवारण पाठ

जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहू और केतु के बीच में होते है तब कालसर्प योग होता है .और अगर राहू और केतु के साथ किसी ग्रह की युति हो तो जातक को उस भाव अनुसार कष्टों का सामना करना पडता है इसलिए मायूस न हो कालसर्प योग से पेरशान हर जातक कालसर्प योग निवारण पाठ को पढ़ अपने मानसिक, शारीरिक ,आर्थिक,कष्टो से छुटकारा पा सकता है ।

अथः सर्प सूकत पाठ

अनन्त कालसर्प योग नाशाय विषधरं धराय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
कुलिक कालसर्प योग नाशाय हलाहल पानाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महा देवाय च नमो नमः।
वासुकि कालसर्प योग नाशाय विषहरणाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
शंखपाल कालसर्पयोग नाशाय महाकाल कालाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
पदम नाम कालसर्प योग नाशाय महाकाल कूटाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
पदम् नाभ कालसर्प योग नाशाय महाभय हरणाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
तक्षक कालसर्प योग नाशाय महाडंस दमनाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ककोर्टक सर्पयोग नाशाय विष कष्ट हरणाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
शंखनाद सर्प योग नाशाय विष पीडा निवारणाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
पातक काल सर्प योग नाशय दाह दुख भंजनाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
विषाक्त काल सर्प योग नाशाय विष दोष दमनाय च नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते शेषनाग नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते बुधन्य सुनागाय कालसर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते नन्दसार नव नागाय कालसर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते अश्वतरी नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते कंवल कल नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते नरेन्द्र नाग नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते वज्रदंष्ट्र नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
नमस्ते हेममाली नागाय काल सर्प योग नाशकाय नमः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ब्रह्म लोकेषु ये सर्पा शेष नागादि पुरोगमा।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ऋषि लोकेषु ये सर्पा वासुक्यादि प्रमुखादया।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
देवेन्द्र लोकेषु ये सर्पा कद्रुकादि मातृ भक्ति युता।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
असुर लोकेषु ये सर्पा तक्षकादि क्रोध संभविता।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
सत्य लोकेषु च ये सर्पा सुबुध्न्यादि शान्तिप्रिय सर्वदा।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
यम लोकेषु च ये सर्पा ककोर्टकादि अपराधिना दण्डिता।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
वरुण लोकेषु च ये सर्पा अनन्तादि च जल चरा।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
गन्धर्व लोकेषु च ये सर्पा हेममाल्यादि चसु सुगन्धिता।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ॐ भूः लोक लोकेषु ये सर्पा कालीयादि यमी कुन्ड वासिनाः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ॐ भुव लोक लोकेषु ये सर्पा शंख पालादि भुजंग बलाः।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।
ॐ स्वः लोक लोकेषु ये सर्पा पदम नाभादि नभ गामिना:।
नमो नीलाय नील कंठाय महादेवाय च नमो नमः।।

इति नील ग्रीवाय नमो नमः।

बुधवार, 1 अप्रैल 2009


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।







माँ दुर्गा आप को नमस्कार है।संपूर्ण जगत की माता आप को नमस्कार है ।तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्व मंगलों की भी मंगल हो। दयासागर प्रेममय माँ दुर्गा प्रसन्न हो । तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो।सभी की कामनाओं को पूर्ण करने वाली माँ दुर्गा मैं आपको बारंबार प्रणाम करती हूँ।




दुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी कहा गया है। तीसरा रूप चंद्रघंटा है। दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। पाँचवा रूप स्कंद माता है। दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है। दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है।




इस तरह नवरात्र के 9 दिन माँ की आराधना व पूजन,जप तन मन को शुद्ध कर संपूर्ण श्रद्धा व विश्वास से किया जाए तो कई कष्टों से बचा जा सकता हैं। साथ ही दुर्गा सप्तशती के पाठ से हर मनोकामना पूर्ण होती है ।








शुक्रवार, 20 मार्च 2009

क्या आप जानते है

क्या आप जानते है आत्मा क्या है?

आत्मा परमात्मा का एक अविनाशी अंश है। यह परमात्मा की सनातन शक्ति है किन्तु माया के कारण यह आत्मा परमात्मा से अलग नजर आता है। आत्मा परमात्मा का इसी तरह मेल है। जैसे-सूरय और उसकी किरण में। आत्मा परमात्मा का एक अविनाशी तत्व है। इसी के बल से मन इन्दिर्‌यॉ और शरीर सब अपना-अपना काम करते है। आत्मा अमर है।

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