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रविवार, 17 जनवरी 2010

खंडित आत्मा


पिछले लेख मे मैने आत्मा के दो खंडो के बारे मे चर्चा की थी ।जिसमे एक खंड स्त्री तत्व और दूसरा पुरुष तत्व है।वास्तव मे आत्मा के भी वर्ग है ।उच्च, मध्यम और निम्न । जब कालचक्र मे घूमती हुई एक ही वर्ग की आत्माएँ आपस मे मिलती है,तो उन्हे पूर्ण संतुष्टि मिलती है।कभी कभी आप ने महसुस किया होगा कि हमारा मन बहुत व्याकुल हो जाता है लेकिन हम उस का कारण नही समझ पाते । यह बैचनी क्यो है? यह व्याकुलता क्यो है?माया के कारण हम यह जान नही पाते । जो इस माया के भ्रम जाल से निकल पाता है वह ही इस रह्स्यमय और गोपनीय भेद को जान पाता है।हम ने न जाने कितनी बार जन्म लिया ,कभी स्त्री बने ,कभी पुरुष बने ।इस तरह के न जाने कितने ही विवाह किये ,पर हमे शान्ति नही मिली ।वास्तव मे हमारा मिलन शारीरिक तल तक ही सीमित था। जो काम और भौतिक कामनाओ के अतिरिक्त और कोई सृ्ष्टि पैदा नही करता है ।आत्मा के मिलन का हम ने कभी प्रयास ही नही किया अर्थात बिछुडे हुये आत्मखंड के मिलन का प्रयास ही नही किया। बिछुडे हुये आत्मखंड का मिलन जब होता है तभी सच्चे अर्थो मे वास्तविक मिलन कहा जाता है । तभी हमारी खंडित आत्मा को आन्नद प्राप्त होता है ।यही आत्मा की पूर्णावस्था है तथा मुक्ति है।

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