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बुधवार, 22 सितंबर 2021

इंद्र का ब्रह्महत्या दोष


वृत्तासुर की हत्या के बाद इंद्र देवता को ब्रह्म हत्या का दोष लगा। उस दोष के निवारण हेतु वह स्वर्ग को छोड़कर किसी अज्ञात स्थान पर चले गए। स्वर्ग की व्यवस्था अस्त-व्यस्त होने के कारण सभी देवता विष्णु भगवान जी के पास गए उन्होंने बताया कि इंद्र मानसरोवर में कमल की नाल के अंदर छिपा हुआ है आप उनसे अश्वमेघ यज्ञ करवाये जिससे माता प्रसन्न हो जाएंगी। तब बृहस्पति देव जी और सभी  देवताओं ने इंद्र द्वारा अश्वमेध यज्ञ करवाया। जिससे इंद्र पर लगा ब्रह्महत्या का दोष चार भागों में बंट गया। एक भाग वृक्ष को दिया जिसने गोंद का रूप धारण किया। दूसरा भाग नदियों को दिया जिसने फेन का रूप धारण किया। तीसरा भाग पृथ्वी को दिया जिसने पर्वतों का रूप धारण किया। चौथा भाग स्त्रियों को प्राप्त हुआ जिससे वे रजस्वला होने लगी। इस प्रकार से ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने पर इंद्र फिर से शक्ति संपन्न हो गए और अपने स्वर्ग पर निवास करने लगे।

चित्र- गूगल साभार

शनिवार, 11 सितंबर 2021

शिवलिंग क्या है


प्रलय काल में सृष्टि को अपने में समाहित कर लेने का नाम ही लिंग है। सृष्टि के कर्त्ता देवों के देव महादेव जी हैं और महादेवी उनकी शक्ति हैं। शिव जी का पूरा परिवार शिवलिंग में ही विराजमान है। जो ऊपर लिंग है वह शिवजी का स्वरुप है और वेदी माता पार्वती जी हैं। और जहां से पानी गिरता है एक और गणेश दूसरी और कार्तिकेय जी का  स्थान है। बीच का स्थान उनकी पुत्री अशोक सुंदरी का है इसलिए जब हम शिवलिंग पर जल की धार अर्पित करते हैं तो  संपूर्ण शिव परिवार को जल अर्पित हो जाता है। हर हर महादेव 🙏

मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

विक्रम संवत 2078

 हिंदू नव वर्ष का आरंभ चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से किया जाता है।चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था।आज नवसंवत्सर विक्रम संवत 2078 मार्च 13, 2021 से हिंदुओं का नया साल शुरू होता है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करते समय उस समय के नवसंवत्सर का उच्चारण किया जाता है। कुल संवत्सर 60 प्रकार के होते हैं। जब 60 संवत्सर पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले संवत्सर का आरंभ हो जाता है। हमारे ग्रंथों में भी 60 साल के चक्रों का वर्णन है। जिसे 3 भागो में बांटा गया है। 20 साल ब्रह्मा जी के, 20 साल विष्णु जी के, 20 साल शिव जी के माने गये हैं। ब्रह्माजी के 20 साल नवनिर्माण के होते हैं जिसमें निर्माण और विनाश दोनों होते हैं। 20 साल जो विष्णुजी के है, उसमे नये आविष्कार दुनिया में होते हैं। जो ब्रह्माजी के निर्माण का ही एक अंग है। बाकि जो 20 साल शिवजी के होते हैं वो उन सबको भोगने के लिए होते हैं।

विक्रम संवत 2078 का आरंभ मंगलवार से हो रहा है तो इस साल के राजा मंगलदेव और मेष संक्राति भी है तो मंत्री भी मंगलदेव होगे। नवरात्रि का पहला दिन जो वार होता है उससे माँ दुर्गा के वाहन का पता चलता है। मंगलवार के दिन होने पर देवी  का वाहन घोड़ा है इसलिए इस बार माँ दुर्गा घोड़े पर सवार होकर धरती पर आई है। जिस से युद्ध की आशंका रहती है। पर जाते समय उनका वाहन हाथी है।  जो खेती के लिए शुभ है तथा साथ ही ज्यादा वर्षा के योग भी बनते हैं।

चित्र---गूगल साभार 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

कामाख्या शक्तिपीठ

 


कामाख्या शक्तिपीठ असम राज्य के गुवाहाटी के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या मंदिर जो 51 महाशक्ति पीठो मे से एक है। यहां सती माता का योनि अंग गिरा था इसलिए इसे योनिपीठ भी कहा जाता है। कामाख्या मंदिर में प्रवेश करते ही एक बहुत बड़ा हॉल है।उस हॉल के बीच में हरगौरी के रुप में कामेश्वर शिव-कामेश्वरी देवी की युगल मूर्ति स्थापित है। सीढ़ियां उतर कर गर्भगृह है। कामाख्या योनि पीठ से निरंतर जल बहता रहता है। यह जल कहाँ से आता है और कहाँ जाता है, यह एक रहस्य है।
 

गर्भगृह में देवी माता की योनि रूपा शिला विद्यमान है, जो वस्त्र से ढकी रहती है और उस के सामने दीपक जलता रहता है। शक्ति पीठ की रक्षा के लिए उन से संबंधित एक भैरव होते हैं। भैरव को शिव का ही रूप माना जाता है। भैरव जो पीठ की रक्षा करते हैं उन्हें क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। कामाख्या मंदिर के भैरवजी उमानन्द जी है। इन के दर्शन करने पर ही कामाख्या मंदिर की यात्रा पूरी मानी जाती है। कामाख्या देवी के मंदिर के निकट एक कुंड है।जिसे सौभाग्य कुण्ड कहा जाता है। कुंड का पानी लाल रंग का है। कुंड के पास ही गणेश जी का मंदिर है। इन का दर्शन करना भी जरूरी होता है।जब आषाढ़ मास में सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है तो उस समय पृथ्वी ऋतुमति होती है।इस समय को अम्बुवाची पर्व कहते है। यहां हर साल इस समय अम्बुवाची मेला लगता है। उस दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण पानी का रंग लाल हो जाता है।माना जाता है कि जब मां तीन दिन की रजस्वला होती है तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। चौथे दिन ब्रह्म मुहूर्त में देवी को स्नान करवाकर श्रृंगार के उपरान्त ही मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोला जाता है। तीन या चार दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस भीगे कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है
 

तंत्र साधना के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है।ऐसा माना जाता है कि उच्च कोटि के तंत्र साधक इस अवसर पर सूक्ष्म शरीर द्वारा माता के दर्शनों के लिए आते हैं। कामाख्या में अम्बुवाची पर्व के अलावा दो उत्सव और मनाए जाते हैं।पहला देवध्वनि उत्सव, इसमें वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य किया जाता है और दूसरा हर-गौरी विवाह। पौष माह के कृष्ण पक्ष में पुष्य नक्षत्र में यह उत्सव मनाया जाता है, जिसमें कामेश्वर की चल मूर्ति को कामेश्वर मंदिर में प्रतिष्ठित  किया जाता है। दूसरे दिन देवी के मंदिर में दोनों मूर्तियों का हर-गौरी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। 


चित्र... गूगल साभार 

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