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मंगलवार, 5 मार्च 2013

स्वंय भू प्रकट आद शिवलिंग, काठगढ



स्वंय भू प्रकट आद शिवलिंग

कुछ दिन पहले प्रभु कृपा से श्री सदाशिव महादेव जी के मंदिर जाना का मौका मिला । यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगडा में स्थित काठगढ नामक स्थान में स्थित है।10 मार्च 2013 को महाशिवरात्रि है। ऎसा कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन दोनो स्तंभ्भ आपस में  जुड जाते है। मंदिर में जाने के लिए सीढियां बनी हुई है। फिर आगे बडा प्रांगण है । जिस के आगे महादेव जी का मंदिर है । जहाँ शिव-शक्ति के रुप में विशाल लिंग है।  स्वयं भू-प्रकट इस शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण में भी है। दो भागो में विभाजित यह शिवलिंग प्रिया-प्रियतम रुप शक्ति और शिव का स्वरुप है । लिंग में प्रतिष्ठित भगवान शिव-शिवा भोग और मोक्ष को देने वाले है । इस में ऊँचा आकार शिव का और छोटा आकार पार्वती माँ का प्रतीक है । इन दोनो भागों के बीच का अन्तर ग्रहों तथा नक्षत्रों के अनुरुप घटता-बढता रहता है।

 शिव पुराण अनुसार जब श्री ब्रह्मा जी व विष्णु जी में विवाद अपने आप को बढे होने को ले कर हुआ,जिस के कारण दोनो में युद्ध हुआ । तब दोनो एक दूसरे पर प्रहार करने लगे। यह देख भगवान सदाशिव ब्रह्मा जी और विष्णु जी के बीच में एक महान अग्नि स्तभ्भ के रुप में प्रकट हुए। तब ब्रह्मा जी ने हंस का रुप धारण कर आकाश की ओर गमन किया तथा विष्णु जी ने शूकर का रुप धारण कर उस अग्नि स्तभ्भ का मूल देखने पाताल मे बहुत दूर तक चले गये। कई वर्षो तक जब स्तभ्भ के ओर-छोर का पता नही चला तब ब्रह्मा जी आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु जी के पास आए और बोले कि मै स्तभ्भ का शीर्ष देख आया हूँ। जिसके ऊपर केतकी का फूल था। तब  श्री विष्णु जी ने ब्रह्मा जी के चरण पकड लिये। तब इस छल को देखकर महादेव जी उमादेवी जी के साथ उस अग्नि रुपी स्तभ्भ में से प्रकट हुए और विष्णु जी की सत्यवादिता पर प्रसन्न हो कर विष्णु जी को अपनी समानता प्रदान की। तब भगवान सदाशिव के दर्शन पाकर श्री विष्णु जी ने उन्हे प्रणाम कर ऊपर की ओर देखा तो उस समय पाँच कलाओ से युक्त ऊँ कार जनित मंत्र का साक्षात्कार हुआ। तब महादेव जी का 'ऊँ तत्वमसि ' यह महावाक्य दृ्ष्टि गोचर हुआ। जो परम् उत्तम मंत्र रुप है तथा शुध्द है। शिवलिग के दक्षिण भाग में सनातन आदि वर्ण अकार जो सूर्य मंडल के समान तेजोमय सृष्टिकर्ता है जिसे बीज् कहते है। उत्तर भाग में उकार का जो अग्नि के समान दीप्तिशाली है,जिसे योनि कहते है। मध्य भाग मकार जो चंद्र मंडल के समान उज्जवल कान्ति से प्रकाशमान है। जिसे बीज मंत्र के स्वामी कहते है। अकार सृष्टिकर्ता है, उकार मोह में डालने वाला तथा मकार नित्य अनुग्रह करने वाला है। इस प्रकार '','' ,और '' इन त्रिविध रुपों में वर्णित ओउम ऎसा कहा गया है। शिवलिंग के मूल में श्री ब्रह्मा जी, मध्य मे श्री विष्णु जी और ऊपर स्वंय भगवान शिव निवास करते है। देवी पार्वती जी और् लिंग महादेव के रुप है इसलिए शिवलिंग का पूजन करने से त्रिदेवो और आदि शक्ति की पूजा स्वत: हो जाती है।  ऊँ हर हर महादेव...

 चित्र- अपने कैमरे से 



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