चित्र साभार - गूगल
श्री सतगुरु महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम. क्या समर्पण करुँ मेरा तो कुछ भी नही,जो कुछ है वो आप ही का है,आप ही का आप को अर्पण मेरे प्रभु...
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध पक्ष
पितृपक्ष अर्थात श्राद्धपक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक रहते है।इसमें पितरों का तर्पण किया जाता है।श्राद्ध के द्वारा पितृ- ऋण से निवृति प्राप्त होती है।दिवंगत पूर्वजों की तिथि पर उनके निमित ब्राह्मणों को भोजन करा देने से हमारे पितृ खुश हो जाते है।पुरुष की तिथि पर ब्राह्मण को और स्त्री की तिथि पर ब्राह्मणी को भोजन कराया जाता है।भोजन कराने के बाद यथा शक्ति दान-दक्षिणा,वस्त्र देना चाहिए। दिवंगत पूर्वजों की प्रसन्नता ही पितृ ऋण से मुक्त करा देती है।इसे पार्वण श्राद्ध कहते है। पार्वण श्राद्ध के लिए अपराह्ण व्यापिनी तिथि ली जाती है। जिसकी मृत्यु की तिथि का पता न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है।श्राद्ध भोजन का समय दोपहर का होता है। जिसे कुतुप बेला कहते है।अमावस्या के दिन हमारे पितृगण वायु रुप में हमारे घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते है और अपने स्वजनो से श्राद्ध की अभिलाषा करते है।जब तक सुर्य अस्त नही हो जाता तब तक वे वही भूख-प्यास से व्याकुल होकर खडे रहते है। जो श्राद्ध करते है वे उन्हे आयु ,पुत्र ,यश , कीर्ति , सुख ,धन और धान्य आदि का आर्शीवाद दे अपने लोक को चले जाते है।देवताओ से पहले पितरो को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है।देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व होता है। वायु पुराण ,मत्स्य पुराण ,गरुण पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति इत्यादि में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है।श्राद्ध मे तिल बहुत पवित्र माने जाते है। तिल का प्रयोग करने पर असुर ,दानव और दैत्य भाग जाते है। एक ही तिल का दान स्वर्ण के बत्तीस सेर तिल के समान है।तिल तथा कुश की उत्पत्ति विष्णु जी के शरीर से हुई थी ।तिल विष्णु जी के पसीने से उत्पन्न हुए है तथा कुश की उत्पत्ति विष्णु जी के रोमों से हुई है इसलिए पितृकार्य में इसका विशेष महत्व होता है। कुश के मूल भाग में ब्रह्मा ,मध्य भाग में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास माना जाता है।श्राद्ध प्रेतजनों को जिस प्रकार से तृप्ति प्रदान करता है उस के लिए भगवान विष्णुजी ने कहा है कि "मनुष्य अपने कर्मानुसार यदि देवता हो जाता है तो श्राद्धान्न अमृत होकर उसे प्राप्त होता है और् वही अन्न गन्धर्व योनि में भोग रुप से तथा पशु योनि में तृणरुप में,नाग योनि में वायुरुप से,पक्षी योनि में जलरुप से और राक्षस योनि मे आमिष तथा दानव योनि के लिए मांस, प्रेत के लिए रक्त,मनुष्य के लिये अन्न-पानादि और बाल्यावस्था में भोग रस हो जाता है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
jaankari ke liye aabhar anjana ji
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संजय जी
जवाब देंहटाएंआपके सौजन्य से यह जानकारी भी मिल ही गई।
जवाब देंहटाएंबहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंshukriya is jaankari ke liye
जवाब देंहटाएंjaankari ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी मिली! धन्यवाद ! आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक पोस्ट----नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनायें स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी उपलब्ध है इस पोस्ट में ...
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी, आभार।
जवाब देंहटाएंpuri trah se aaj jana ..shukriya!
जवाब देंहटाएंआप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
जवाब देंहटाएंमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी
जवाब देंहटाएंआप सभी का बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंbahut hi upyogi jaankaari..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
आपको नववर्ष 2011 मंगलमय हो ।
जवाब देंहटाएंभावाव्यक्ति का अनूठा अन्दाज ।
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com
बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा ' पर आई इसके लिए बहुत
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद .इस लेख के माध्यम से अच्छी जानकारी दी है आपने.श्राद के सम्बन्ध में प्रामाणिक और वैज्ञानिक जानकारी की अति आवश्कता है.
nice
जवाब देंहटाएंjaankari mili....
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं