सत्य,त़प, पवित्रता ओर दया इन चारों का समन्वय ही धर्म है| धर्म का पहला अंग सत्य है| सत्य ही परमात्मा है | सत्य द्वारा नर, नारायण बनता है | धर्म का दूसरा अंग तप है | दुःख सहन कर के जो भक्ति करते है वही तप है| प्रभु आप को बहुत सम्पति देते है पर बहुत सुख का उपयोग ना करिये | जो बहुत सुख भोगता है उसके तन ओर मन दोनों बिगड़ते है| समझ कर दुःख सहन करना और भक्ति करना ही तप है| धर्म का तीसरा अंग पवित्रता है| मन को पवित्र रखिए | मरने के बाद मन साथ जाता है | मन को सम्भालिये ओर उसे भटकने ना दे | धर्म का चौथा अंग दया है | प्रभू ने आपको दिया है तो उदार होकर अन्य को भोजन कराइए | और स्वंय खाइये | प्रभु ने नहीं दिया तो दूसरों की सेवा में अपने तन को लगाइये |
श्री सतगुरु महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम. क्या समर्पण करुँ मेरा तो कुछ भी नही,जो कुछ है वो आप ही का है,आप ही का आप को अर्पण मेरे प्रभु...
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
श्री बालकृष्णलाल जी
प्रभु श्री बालकृष्णलाल जी को लुका छिपी का खेल बहुत प्रिय है क्यों? (वृंदावन में भी लाला अपने सखा के साथ लुका छिपी का खेल खेलते थे)क्योकि परमात्मा मानव को संसार में उस के कर्मो के अनुसार भेजते समय एक बार प्रकट होते है फिर वह छुप जाते है मानव की बारी होती है अब लाला को ढूढने की,इसलिए मानव को संसार में आकर उन्हें ढूढने का प्रयत्न करना चाहिए
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
क्यो?
न्यायलय मे गीता की शपथ ली जाती है।किसी ओर रामायण, वेद पुराणो की शपथ क्यो नही ली जाती है क्योकि जगत मे सत्य से भी बडा एक सत्य है ओर वह है प्रेम । जिसके प्रति प्रेम है उसके प्रति असत्य का होना कठिन होता है यानि जहां प्रेम है वही सत्य का दर्शन कर सकते है।प्रेम की रग को पकडना आवश्यक है तभी सत्य बुलवाया जा सकता है।
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