सत्य,त़प, पवित्रता ओर दया इन चारों का समन्वय ही धर्म है| धर्म का पहला अंग सत्य है| सत्य ही परमात्मा है | सत्य द्वारा नर, नारायण बनता है | धर्म का दूसरा अंग तप है | दुःख सहन कर के जो भक्ति करते है वही तप है| प्रभु आप को बहुत सम्पति देते है पर बहुत सुख का उपयोग ना करिये | जो बहुत सुख भोगता है उसके तन ओर मन दोनों बिगड़ते है| समझ कर दुःख सहन करना और भक्ति करना ही तप है| धर्म का तीसरा अंग पवित्रता है| मन को पवित्र रखिए | मरने के बाद मन साथ जाता है | मन को सम्भालिये ओर उसे भटकने ना दे | धर्म का चौथा अंग दया है | प्रभू ने आपको दिया है तो उदार होकर अन्य को भोजन कराइए | और स्वंय खाइये | प्रभु ने नहीं दिया तो दूसरों की सेवा में अपने तन को लगाइये |
सच में सच्चा धर्म यही है की हम दूसरों के कुछ काम आयें...
जवाब देंहटाएंManavta hi sabse bada dharm hai.
जवाब देंहटाएंShubkamnayen.
अंजना जी सच कहूँ तो आज आप के ब्लॉग पे आके बहुत संतुष्टि मिली .....बहुत बहुत आभार .....!!
जवाब देंहटाएंBehad sundar bhav...manvata hi dharm hai.
जवाब देंहटाएंdhrm ko bahut achhe tareeqe se
जवाब देंहटाएंparibhaashit kiyaa hai aapne
aalekh mn.neey hai
abhivaadan
आप सभी ने मेरे इस लेख को सहारा इस के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपूरी तरह से सच और जीवन को नया मोड़ देने वाली अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहेमन्त कुमार
Nav varsh ki dheron shubkamnayen.
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