पृष्ठ

power

LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

प्यार की मंजिल


ये बात कालेज की दिनो की है।तब मै खूब कविताये लिखा करती थी । तब की लिखी अनेक कविताएं मेरी डायरी के पन्नो मे बंद पडी है, पर कालेज के समय हमारी एक सखी ने एक कविता ले कर स्वतंत्र दर्पण (पाक्षिक) मे छापा डाली, हमे मालूम न था ।जब पत्रिका डाक के जरिऎ हमारे घर आई तब हैरान हो गये कि ये कहां से आ गई पत्रिका ? पर जब उसे देखा तो उसमे अपनी छपी कविता को देख कर बहुत खुशी हुई । वह कविता आप भी पढिये ………...

ये प्यार की मंजिल है कठिन ,
कुछ फूल कुछ कांटे है इसमे,
जरा संभल कर चल तू,
कही चुभ न जाए कांटा,
जरा देखकर चल तू ।


ये प्यार की मंजिल है कठिन,
कुछ हरियाली कुछ पतझड है इसमे,
जरा संभल कर चल तू,
कही हाथ न आए पतझड ,
जरा देख कर चल तू ।।

ये प्यार की मंजिल है कठिन ,
पर मुश्किल तो नहीं,
फूल हो या कांटा डगर पर ,
छाई हो बहार या पतझड मौसम पर ,
जरा पहचान कर चल इस मंजिल पर ।।।

अंजना      

चित्र साभार - गूगल


LinkWithin

Related Posts with Thumbnails