108 की संख्या का ऎसा क्या रहस्य है कि ये संख्या पवित्र और शुद्ध मानी जाती है। मंत्र जाप मे भी 108 की संख्या का मह्त्व है क्योकि 108 दानो की माला चाहे वो रुद्राक्ष हो या तुलसी की माला हो ,सर्व सिद्धिदायक मानी गयी है। 108 की संख्या का हमारे मंत्र जाप से क्या संबध है ? इस गूढ रहस्य का भेदन कर जो परिणाम सामने आता है।उसके लिए हमे अपने प्राचीन ऋषियो के चिन्तन और अगाध ज्ञान पर श्रद्धा से नतमस्तक होना पडता है। मोक्ष प्राप्त करना मानव जीवन का अन्तिम लक्ष्य है और इसे प्राप्त करने के लिए योगी जन शरीर के अन्दर स्थित सात चक्रो के भेदन करते है। इसे कुण्डली जागरण कहते है। मूलाधार चक्र पहला चक्र है और सहस्त्रधार चक्र सातवां आखिरी चक्र है|
अंक ज्योतिष के आधार पर 1 का अंक सूर्य का है। जो कि मूलाधार चक्र से संबन्धित है। एक अंक जो ब्रह्म का बोधक है,जब वह अद्वैत रुप से रहता है।
अंक 0 शब्द के मूल आकाश को शून्य कहते है और अंक के मूल को भी शून्य ,शून्य से ही शब्द और अंक की उत्पति होती है।यह पूर्णता का प्रतीक है।
अंक 8 जो शनि का है । जो सहस्त्रधार चक्र से सबंन्धित है।जिसका स्थान सिर के ऊपर होता है।यह सातवां आखिरी चक्र है। जो माया का प्रतीक है।जिस प्रकार से आठ का पहाडे को गुणा करने पर गुणनफल जोडने पर योग घटता-बढता रहता है।यानि ---
8x1=8
8x2=16=1+6=7
8x3=24=2+4=6
8x4=32=3+2=5
8x5=40=4+0=4
8x6=48=4+8=12=1+2=3
8x7=56=5+6=11=1+1=2
8x8=64=6+4=10=1+0=1
8x9=72=7+2=9
8x10=80=8+0=8
इसी प्रकार माया का भी यही हाल है जो निरंतर घटती बढती रहती है ,लेकिन जब ब्रह्म रुपी एक अंक और पूर्णता रुपी शून्य अंक आता है तो माया तितर-बितर हो जाती है। इसीलिए 108 की संख्या सर्वसिद्धि दायक मानी जाती है। इस संख्या का जितना महत्व है, उतना ही इस संख्या मे छुपा रहस्य भी महत्वपूर्ण है।