मानव बार- बार जन्म लेता है पर इस आवागमन से छुटकारा नहीं
मिल पाता। यह चक्र चलता रहता है क्योंकि मनुष्य जो भी कर्म करता है उसका फल
प्राप्त करने के लिए उस का आना जाना लगा रहता है। हम चाहे प्रेम करते हैं
या नफरत, हमे अपने कर्मो का फल भोगना पड़ता है। सुख-दुख हमारे साथ चलते
रहते हैं। पूर्वजन्म के कर्म ही हमें वर्तमान जन्म में एक दूसरे के निकट
लाते हैं। चाहे हम किसी के ऋणी हो या कोई हमारा ऋणी हो। ये ऋण ही हमें
आवागमन के चक्कर में फंसाये रखते हैं। हमारे मन ही के कारण कर्म होता है और
कर्म ही के कारण आत्मा का आवागमन चलता रहता है। हमारे शरीर को प्रकृति ने
बनाया है और मन को संस्कृति ने बनाया है। जब तक मन का अस्तित्व रहेगा तब तक
यह मानव आत्मा बार-बार स्थूल शरीर ग्रहण करेगी और त्याग करेगी। यही जन्म
मरण का खेल है। जब मानव अपनी आत्मा से मन को अलग कर देगा तो इसे आवागमन से
छुटकारा मिल जाएगा और फिर वह परम शांति और परम विश्राम को प्राप्त कर लेता
है। अब मन को शरीर से अलग करने के लिए मन और शरीर के बीच जो प्राण का
स्पन्द काम करता है उस स्पन्द पर अधिकार जमाना पड़ता है। जब उस स्पन्द पर
अधिकार हो जायेगा तो मन और शरीर का संबंध टूट जायेगा क्योंकि प्राण स्पन्द
ही दोनों को एक दूसरे से मिलाता है। इस ज्ञान के होने पर हमे आवागमन के
चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
चित्र--गूगल साभार