अँग्रेजी भाषा का प्रचलन दिनो दिनो बढता जा रहा है।वर्तमान समय में हिन्दी भाषा के प्रति देश में कम हो रहे रूझान से देश की संस्कृतिक विरासत पर नकारात्मक प्रभाव पड रहा है ।जिससे मन बहुत दुखता है। अँग्रेजी भाषा से इतने मोहित होते जा रहे है कि हिन्दी भाषा उपेक्षित होती जा रही है।आज हिन्दी -पत्रिका हो या समाचार पत्र उसे पढ़ना फैशन के विरुद्ध मानते है।हमारे देशवासी अंग्रेजी सभ्यता,साहित्य और रिवाजो पर इतना मोहित हो गये है कि आज वो पिता को डैड कहने लग गया है।डैड जिसका अर्थ है मरा हुआ व्यक्ति,जो पिता हमारे लिए पूजनीय है। आज उन्हे सम्मानजनक शब्दो मे कहने मे भी तकलीफ होती है।माता जो मम्मी बन गई है यानि मसाला लगाकर सुरक्षित रखा गया मृ्तक शरीर । शब्दो का प्रभाव तो हमारे आंतरिक सोच पर भी पड़ता है तभी तो आज माता-पिता , मम्मी डैड बनकर रह गये है यानि बच्चो को अपने माता-पिता से स्नेह लगाव सब मर कर रह गया है,एक मृ्तक शरीर की तरह !!भाषा हमारी संस्कृति का आईना है और इस प्रकार हिन्दी भाषा से दूरी हमें हमारी संस्कृति से भी दूर करेगी।भाषा के विकास एंव उत्थान के लिए हिन्दी भाषी समाज को अंग्रेजी मानसिकता छोडकर आगे आना होगा।जब तक सब मिलकर एकजुट होकर हिन्दी को सर्वोपरि समझकर नहीं बोलते तब तक हम हिन्दी भाषी एकजुट नहीं हो सकते है इसलिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन में हिन्दी भाषा को विशेष स्थान दें।
श्री सतगुरु महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम. क्या समर्पण करुँ मेरा तो कुछ भी नही,जो कुछ है वो आप ही का है,आप ही का आप को अर्पण मेरे प्रभु...
शनिवार, 9 जनवरी 2010
हिन्दी भाषा
अँग्रेजी भाषा का प्रचलन दिनो दिनो बढता जा रहा है।वर्तमान समय में हिन्दी भाषा के प्रति देश में कम हो रहे रूझान से देश की संस्कृतिक विरासत पर नकारात्मक प्रभाव पड रहा है ।जिससे मन बहुत दुखता है। अँग्रेजी भाषा से इतने मोहित होते जा रहे है कि हिन्दी भाषा उपेक्षित होती जा रही है।आज हिन्दी -पत्रिका हो या समाचार पत्र उसे पढ़ना फैशन के विरुद्ध मानते है।हमारे देशवासी अंग्रेजी सभ्यता,साहित्य और रिवाजो पर इतना मोहित हो गये है कि आज वो पिता को डैड कहने लग गया है।डैड जिसका अर्थ है मरा हुआ व्यक्ति,जो पिता हमारे लिए पूजनीय है। आज उन्हे सम्मानजनक शब्दो मे कहने मे भी तकलीफ होती है।माता जो मम्मी बन गई है यानि मसाला लगाकर सुरक्षित रखा गया मृ्तक शरीर । शब्दो का प्रभाव तो हमारे आंतरिक सोच पर भी पड़ता है तभी तो आज माता-पिता , मम्मी डैड बनकर रह गये है यानि बच्चो को अपने माता-पिता से स्नेह लगाव सब मर कर रह गया है,एक मृ्तक शरीर की तरह !!भाषा हमारी संस्कृति का आईना है और इस प्रकार हिन्दी भाषा से दूरी हमें हमारी संस्कृति से भी दूर करेगी।भाषा के विकास एंव उत्थान के लिए हिन्दी भाषी समाज को अंग्रेजी मानसिकता छोडकर आगे आना होगा।जब तक सब मिलकर एकजुट होकर हिन्दी को सर्वोपरि समझकर नहीं बोलते तब तक हम हिन्दी भाषी एकजुट नहीं हो सकते है इसलिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन में हिन्दी भाषा को विशेष स्थान दें।
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