गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर:।'
गुरु साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
गुरु पूर्णिमा का यह पर्व आषाढ मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है।यह पर्व गुरु को अर्पित पर्व है। इस दिन अपने गुरुजी अथवा कुलगुरु की पूजा करनी चाहिए । श्रीकृ्ष्ण जी ने भी गुरु भक्ति के विषय में श्रीमदभागवत के एकाद्श स्कंध के अठारहवें अध्याय के 29 वें श्लोक में कहा है --
"तावत परिचरेद भक्तः श्रद्धावान न सूचक: ।
यावत ब्रह्म विजानीयान्ममेव गुरुमादृ्तः ।।"
अर्थात प्रभु कहते है -कि गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान .द्दढ भक्ति और पूर्ण श्रृद्धा रखते हुए ब्रह्म प्राप्ति का पूर्ण मार्ग दर्शन प्राप्त होने तक गुरु के प्रति जरा भी शंका न करे ।न ही उन के किसी दोष के प्रति ध्यान दे।ब्रह्म प्राप्ति होने तक मुझे ही गुरु के रुप में देखे ।
गुरु रुहानी सृष्टि के बाद्शाह होते है। वह हम पर जो उपकार करते है । उस उपकार का मूल्य हम कभी नही चुका सकते है। वह ही हमारे सच्चे मित्र होते है।हमारी रक्षा हर मुश्किल में तथा लोक परलोक में भी संग होते है । अगर हम सदगुरु को परमात्म-स्वरुप समझकर प्रेम और श्रृद्धा से उनकी उपासना करते है तो शीघ्र ही जीवन की परम मंजिल को प्राप्त कर लेते है।वास्तव में पूर्ण सदगुरु मसीहा हैं जो धरा पर जन-कल्याण हेतु आते हैं ।परमात्मा से भी बडा सतगुरु का स्थान है तभी तो कबीर दास जी ने कहा है--कि
"गुरु गोंविन्द दोऊ खडे काके लागूँ पाँय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय ।"
अंत में श्री सदगुरु जी के श्री चरणों में कोटि- कोटि प्रणाम कर इतना ही कहूंगी कि सतगुरु ही दाता है, सच्चे नाम के इस जग में, तीनों लोको में नहीं ,सतगुरु सम कोई मीत ।
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार
गुरु साक्षात् परब्रह्म् तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
गुरु पूर्णिमा का यह पर्व आषाढ मास की पूर्णमासी को मनाया जाता है।यह पर्व गुरु को अर्पित पर्व है। इस दिन अपने गुरुजी अथवा कुलगुरु की पूजा करनी चाहिए । श्रीकृ्ष्ण जी ने भी गुरु भक्ति के विषय में श्रीमदभागवत के एकाद्श स्कंध के अठारहवें अध्याय के 29 वें श्लोक में कहा है --
"तावत परिचरेद भक्तः श्रद्धावान न सूचक: ।
यावत ब्रह्म विजानीयान्ममेव गुरुमादृ्तः ।।"
अर्थात प्रभु कहते है -कि गुरु के प्रति पूर्ण सम्मान .द्दढ भक्ति और पूर्ण श्रृद्धा रखते हुए ब्रह्म प्राप्ति का पूर्ण मार्ग दर्शन प्राप्त होने तक गुरु के प्रति जरा भी शंका न करे ।न ही उन के किसी दोष के प्रति ध्यान दे।ब्रह्म प्राप्ति होने तक मुझे ही गुरु के रुप में देखे ।
गुरु रुहानी सृष्टि के बाद्शाह होते है। वह हम पर जो उपकार करते है । उस उपकार का मूल्य हम कभी नही चुका सकते है। वह ही हमारे सच्चे मित्र होते है।हमारी रक्षा हर मुश्किल में तथा लोक परलोक में भी संग होते है । अगर हम सदगुरु को परमात्म-स्वरुप समझकर प्रेम और श्रृद्धा से उनकी उपासना करते है तो शीघ्र ही जीवन की परम मंजिल को प्राप्त कर लेते है।वास्तव में पूर्ण सदगुरु मसीहा हैं जो धरा पर जन-कल्याण हेतु आते हैं ।परमात्मा से भी बडा सतगुरु का स्थान है तभी तो कबीर दास जी ने कहा है--कि
"गुरु गोंविन्द दोऊ खडे काके लागूँ पाँय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय ।"
अंत में श्री सदगुरु जी के श्री चरणों में कोटि- कोटि प्रणाम कर इतना ही कहूंगी कि सतगुरु ही दाता है, सच्चे नाम के इस जग में, तीनों लोको में नहीं ,सतगुरु सम कोई मीत ।
चित्र गुगल सर्च इंजन से साभार