अंक शास्त्र हमारे वेदों, उपनिषदों में से निकली हूई एक शाखा है । हमारा धार्मिक जीवन हो या भौतिक जीवन सभी में अंको का स्थान सर्वोपरि है। मालाओं की संख्या,नौ ग्रह,नक्षत्रों की संख्या,मंत्रो की संख्या आदि सभी में अंको की प्रधानता है ।साल,सप्ताह,महीने,वार सभी में अंको की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।यहाँ तक कि हमारे जीवन की साँसों का लेखा-जोखा सभी अंको की गिनती पर निर्भर है।तभी तो पुराने समय में ये ऋषि-मुनि अपने योग द्धारा अपनी सांसो को नियंत्रित कर कितने-कितने वर्षो तक जीवित रहते थे। जब हम जन्म लेते है तो दिन,वार,महीना,साल उसी संख्या से हमारे कर्म और भाग्य का मार्ग विदित हो जाता है ।
पाँच तत्व, (पृथ्वी,आग,जल,वायु,आकाश) पाँच द्रव्य (मिट्टी,लकडी,धातु,आग,जल),पँच परमेश्वर यह पाँच अंक हमारे जीवन में जीवन और मृत्यु से संबधित है।जिसे हम अलग नही कर सकते। हर संख्या में एक गहरा रहस्य छिपा है । परमात्मा की यह सृष्टि खुद एक रहस्य है और इस रहस्य को समझने में अंक हमारे मददगार रहते है। जिस तरह लाभ-हानि,मित्र-शत्रु,तथा उतार-चढाव जीवन में आते है,उन सब में हम अपने मित्र अंको की मदद द्धारा उन परेशानियों से मुक्त हो इस भवसागर से पार उतर सकते है । पाइथागोरस ने भी कहा है-"सभी रचनाओ,स्वरुपों और विचारों का स्वामी अंक है और यही देवताओं और राक्षसों का जनक है।" शून्य (0) जो निराकार ब्रह्र्म का प्रतीक है। शून्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई और शून्य में ही एक दिन सब विलीन हो जायेगा ।सच पूछा जाएँ तो शून्य का अंक बहुत महत्वपूर्ण है,इस के बिना अन्य अंक पंगु है।हर अंक का प्रकृति के साथ कुछ न कुछ गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। शून्य का अंक अगर अंनत स्वरुप है तो एक (1) का अंक ब्रह्र्म का, दो (2) का अंक अर्धनरीश्वर ,तीन (3) का अंक त्रिशक्ति का, चार (4) का अंक स्वातिक का, पाँच (5) का अंक पंच तत्व का, छः (6) का अंक रस का, सात (7) का अंक सप्तऋषि का, आठ (8) का अंक अष्ट भैरव, नौ (9) का अंक नौ देवियों का स्वरुप है। हमारा नाम जो हमारी पहचान है उस का अंक भी हमारे जीवन के सुख-दुख तथा भाग्य का निर्माण करता है ।शब्द और अंक का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । आप भी अपने मित्र-शत्रु अंको को ज्ञात कर जीवन सुखमय कर सकते है । जिस प्रकार डाक्टर से दवाई लेकर रोगी अपना रोग ठीक करता है, उसी प्रकार से अंको के ज्ञान द्धारा मनुष्य अपनी आने वाली हर समस्याओ तथा परेशानी से निजात पा सकता है । अंको के सागर को जो जान लेता है ,वह जीवन की हर गति,लय,क्रम को सुन सकता है ।
चित्र गूगल साभार
पाँच तत्व, (पृथ्वी,आग,जल,वायु,आकाश) पाँच द्रव्य (मिट्टी,लकडी,धातु,आग,जल),पँच परमेश्वर यह पाँच अंक हमारे जीवन में जीवन और मृत्यु से संबधित है।जिसे हम अलग नही कर सकते। हर संख्या में एक गहरा रहस्य छिपा है । परमात्मा की यह सृष्टि खुद एक रहस्य है और इस रहस्य को समझने में अंक हमारे मददगार रहते है। जिस तरह लाभ-हानि,मित्र-शत्रु,तथा उतार-चढाव जीवन में आते है,उन सब में हम अपने मित्र अंको की मदद द्धारा उन परेशानियों से मुक्त हो इस भवसागर से पार उतर सकते है । पाइथागोरस ने भी कहा है-"सभी रचनाओ,स्वरुपों और विचारों का स्वामी अंक है और यही देवताओं और राक्षसों का जनक है।" शून्य (0) जो निराकार ब्रह्र्म का प्रतीक है। शून्य से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई और शून्य में ही एक दिन सब विलीन हो जायेगा ।सच पूछा जाएँ तो शून्य का अंक बहुत महत्वपूर्ण है,इस के बिना अन्य अंक पंगु है।हर अंक का प्रकृति के साथ कुछ न कुछ गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। शून्य का अंक अगर अंनत स्वरुप है तो एक (1) का अंक ब्रह्र्म का, दो (2) का अंक अर्धनरीश्वर ,तीन (3) का अंक त्रिशक्ति का, चार (4) का अंक स्वातिक का, पाँच (5) का अंक पंच तत्व का, छः (6) का अंक रस का, सात (7) का अंक सप्तऋषि का, आठ (8) का अंक अष्ट भैरव, नौ (9) का अंक नौ देवियों का स्वरुप है। हमारा नाम जो हमारी पहचान है उस का अंक भी हमारे जीवन के सुख-दुख तथा भाग्य का निर्माण करता है ।शब्द और अंक का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । आप भी अपने मित्र-शत्रु अंको को ज्ञात कर जीवन सुखमय कर सकते है । जिस प्रकार डाक्टर से दवाई लेकर रोगी अपना रोग ठीक करता है, उसी प्रकार से अंको के ज्ञान द्धारा मनुष्य अपनी आने वाली हर समस्याओ तथा परेशानी से निजात पा सकता है । अंको के सागर को जो जान लेता है ,वह जीवन की हर गति,लय,क्रम को सुन सकता है ।
चित्र गूगल साभार