पिछले लेख मे मैने आत्मा के दो खंडो के बारे मे चर्चा की थी ।जिसमे एक खंड स्त्री तत्व और दूसरा पुरुष तत्व है।वास्तव मे आत्मा के भी वर्ग है ।उच्च, मध्यम और निम्न । जब कालचक्र मे घूमती हुई एक ही वर्ग की आत्माएँ आपस मे मिलती है,तो उन्हे पूर्ण संतुष्टि मिलती है।कभी कभी आप ने महसुस किया होगा कि हमारा मन बहुत व्याकुल हो जाता है लेकिन हम उस का कारण नही समझ पाते । यह बैचनी क्यो है? यह व्याकुलता क्यो है?माया के कारण हम यह जान नही पाते । जो इस माया के भ्रम जाल से निकल पाता है वह ही इस रह्स्यमय और गोपनीय भेद को जान पाता है।हम ने न जाने कितनी बार जन्म लिया ,कभी स्त्री बने ,कभी पुरुष बने ।इस तरह के न जाने कितने ही विवाह किये ,पर हमे शान्ति नही मिली ।वास्तव मे हमारा मिलन शारीरिक तल तक ही सीमित था। जो काम और भौतिक कामनाओ के अतिरिक्त और कोई सृ्ष्टि पैदा नही करता है ।आत्मा के मिलन का हम ने कभी प्रयास ही नही किया अर्थात बिछुडे हुये आत्मखंड के मिलन का प्रयास ही नही किया। बिछुडे हुये आत्मखंड का मिलन जब होता है तभी सच्चे अर्थो मे वास्तविक मिलन कहा जाता है । तभी हमारी खंडित आत्मा को आन्नद प्राप्त होता है ।यही आत्मा की पूर्णावस्था है तथा मुक्ति है।
श्री सतगुरु महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम. क्या समर्पण करुँ मेरा तो कुछ भी नही,जो कुछ है वो आप ही का है,आप ही का आप को अर्पण मेरे प्रभु...
रविवार, 17 जनवरी 2010
खंडित आत्मा
पिछले लेख मे मैने आत्मा के दो खंडो के बारे मे चर्चा की थी ।जिसमे एक खंड स्त्री तत्व और दूसरा पुरुष तत्व है।वास्तव मे आत्मा के भी वर्ग है ।उच्च, मध्यम और निम्न । जब कालचक्र मे घूमती हुई एक ही वर्ग की आत्माएँ आपस मे मिलती है,तो उन्हे पूर्ण संतुष्टि मिलती है।कभी कभी आप ने महसुस किया होगा कि हमारा मन बहुत व्याकुल हो जाता है लेकिन हम उस का कारण नही समझ पाते । यह बैचनी क्यो है? यह व्याकुलता क्यो है?माया के कारण हम यह जान नही पाते । जो इस माया के भ्रम जाल से निकल पाता है वह ही इस रह्स्यमय और गोपनीय भेद को जान पाता है।हम ने न जाने कितनी बार जन्म लिया ,कभी स्त्री बने ,कभी पुरुष बने ।इस तरह के न जाने कितने ही विवाह किये ,पर हमे शान्ति नही मिली ।वास्तव मे हमारा मिलन शारीरिक तल तक ही सीमित था। जो काम और भौतिक कामनाओ के अतिरिक्त और कोई सृ्ष्टि पैदा नही करता है ।आत्मा के मिलन का हम ने कभी प्रयास ही नही किया अर्थात बिछुडे हुये आत्मखंड के मिलन का प्रयास ही नही किया। बिछुडे हुये आत्मखंड का मिलन जब होता है तभी सच्चे अर्थो मे वास्तविक मिलन कहा जाता है । तभी हमारी खंडित आत्मा को आन्नद प्राप्त होता है ।यही आत्मा की पूर्णावस्था है तथा मुक्ति है।
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अच्छी जानकारी.
जवाब देंहटाएंacharaj he mujhe..AATMA KE KHAND KO LEKAR...
जवाब देंहटाएंyaa KHANDIT AATMAA ko lekar...,
bahut padhhaa he is prakaar ka nahi padhhaa thaa.., mujhe bhatkaav jyada lagaa, vicharo me yaa fir lekhani me.khaaskar jis vishaay par aap likh rahe he..vo bahut vyaapak he...ise sankshipt nahi banaya jaa sakta..,
anytha naa le../ soch aour vichaar se hi nishkarsh peda hota he.
आत्मा के मिलन का हम ने कभी प्रयास ही नही किया ...
जवाब देंहटाएंकैसे होता है ये मिलन.....???
अमिताभ श्रीवास्तव जी , आप को मेरा यह लेख भटकाव पूर्ण लगा ये आप का दृ्ष्टिकोण है,पर मै ऎसा नही मानती क्योकि मेरा उद्धेश्य यही है कि जो ज्ञान मुझे प्राप्त होता है उसे मै बांटू ताकि ओर भी उस से लाभ उठा सके । हमारे वेदो मे कई ऎसे रहस्य है जो तंत्र मंत्र द्वारा या यू कहे साधना द्वारा ही उनका प्रकटीकरण हो पाता है।कुछ संकेत ही दिये जा सकते है बाकि उन संकेतो को जानना व्यक्ति के अपने कर्म के ऊपर है।
जवाब देंहटाएंहीर जी,यह मिलन गुहृविद्या(occultism) योग के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट बेचैन आत्मा को बहुत पसंद आया.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी.
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