मेरी कूची व कलम से
जन्म होने की खुशी
और मौत का रंज
ये तो दस्तूर है पुराना
मुक्त होगे कब हम
इन आदतो और इच्छाओ
से जकडे पिंजरो की जंजीरो से
आजादी की डोर है पास अपने
फिर भी बन अंजान यूही
कब तक ढोयेगे इन जंजीरो को
हुआ है मुश्किल हाय क्या करे !
निकलता है जब गम नया
सुख भी जाता है छिप
बादल की ओट मे ।
bahut khub ..badhiya likha hai aapne
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे!
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर अभिवयक्ति पर अर्ज किया है,
आदमी से आदमी का रिश्ता अब यूँ हुआ,
मै ढूढता रहा लोग भूलते गए.
रत्नेश त्रिपाठी
निकलता है जब ग़म नया
जवाब देंहटाएंसुख भी जाता है छिप
बादलों की ओट में
ये भी तो दस्तूर पुराना ही है
जिंदगी धूप-छाँव का ही खेल है
और हम....
इच्छाओं और आदतों में जकड़े रहना ही
पसंद करते हैं ....शायद
मुक्त होगे कब हम
जवाब देंहटाएंइन आदतो और इच्छाओ
से जकडे पिंजरो की जंजीरो से
शायद अगली पीढ़ी कुछ मुक्त हो जाये हमारी गुहार से .....!!
इच्छाओ
जवाब देंहटाएंसे जकडे पिंजरो की जंजीरो से
आजादी की डोर है पास अपने
फिर भी बन अंजान यूही
कब तक ढोयेगे इन जंजीरो को
हुआ है मुश्किल हाय क्या करे !
vah bahut hee sundar aur samvedansheel panktiyan.
जन्म होने की खुशी ऒर मॊत का रंज ये तो द्स्तूर हॆ..सही कहा
जवाब देंहटाएंचित्र वाकई अच्छा हॆ...
waqai me bahut hi sahi baat likhi hai aapane .
जवाब देंहटाएंrachana ki har pankti haqikat liye huye hai.
poonam
SACH ME IS JANM MRITYU KE KHEL KO KAUN SAMAJH PAYA HAI!1ACHHA LGA AAPKA BLOG!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंजीवन के सत्य को बताती अच्छी रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही मारक है आपकी रचना ।
जवाब देंहटाएंआभार..!
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंरचना सुन्दर है, पर एक बात कहना चाहूँगा कि, किसने पाई है जीवन चक्र से निजात ? भगवान् भी जब मनुष्य का रूप धर जन्म लेते हैं तो उन्हें भी इनसारी बातों से होकर गुज़रना पढता है !
जवाब देंहटाएंkafi achi kavita likhi hai apne apki aur kavitao ka intezar rahega......
जवाब देंहटाएं